SOCIAL - फेंगशुई राखियों की ज्यादा डिमांड
वाराणसी :- बहनें अपने भाई की कलाई में बांधने के लिए खूबसूरत राखियों को खरीदने के लिए बाजार पहुंच रही हैं। बाजार खूबसूरत राखियों से अटे पड़े हैं। इस बार फेंगशुई राखियों की डिमांड सबसे ज्यादा है। इसके अलावा इको फ्रेंडली राखियों की भी धूम है। इसके अलावा मोतियों, रूबी और रंग-बिरंगे पत्थरों को रेशमी धागे में पिरोकर बनाई गई राखियों की भी खूब बिक्री हो रही है। चंदन की लकड़ी से बने गणेश हों या रूबी जैसे महंगे पत्थर से बने फूलों के आकार की राखी....सभी अपने आप में बेहद खूबसूरत हैं। बहनें बाजार में जमकर खरीदारी का आनंद उठा रही हैं। बाजार में सस्ती राखियां भी हैं और डिजाइनदार महंगी राखियां भी।
कारोबारियों के मुताबिक इस बार यहां इको फ्रेंडली राखी की धूम है। इस राखी की खासियत की बात करें, तो ये पूरी तरह से डिग्रेडेबल चीज़ों से बनी है। इसमें खूबसूरती से फूलों के बीजों को सजाया गया है। इसे बाद में गमले में लगाया जा सकता है, जिससे निकलने वाले खुशबूदार फूल भाई को हर पल अपनी बहन की याद दिलाते रहंगे। इस राखी का मकसद मौजूदा प्रदूषित माहौल में पौधारोपण को बढ़ावा देना है। बता दें, प्राचीन काल से चले आ रहे इस पर्व ने आज के दौर में आधुनिकता का चोगा भले ही धारण कर लिया हो, पर इस त्योहार का महत्व कम नहीं हुआ है। हर बहन और भाई को इस त्योहार का बेसब्री से इंतजार रहता है। धर्म एवं आस्था की नगरी काशी में भी बाज़ारों की रौनक देखते ही बनती है। काशी के तमाम छोटे-बड़े बाजार खूबसूरत राखियों से अटे पड़े हैं। लहुराबीर, हो अर्दलीबाजार, लंका हो सारनाथ सभी जगह इन दिनों ग्राहकों की भीड़ के चलते पैर रखने तक की जगह नहीं है। काशी का सबसे बड़ा होलसेल मार्केट है दालमंडी, कबीर चौरा, चौक मैदागिन यहां हर तरह की राखियां उपलब्ध हैं। यहीं से दुकानदार राखियां खरीदकर पूर्वांचल के बाज़ारों में ले जाकर बेचते हैं। हर बाजार में राखियों के दामों में फर्क भी है। हिन्दू धर्म में रक्षाबंधन का विशेष महत्व है। पुरातन काल से इस पर्व को मनाया जा रहा है। यह ऐसा पर्व है जिसमें संवेदनाएं और भावनाएं कूट-कूट कर भरी हुईं हैं। यह इस पर्व की महिमा ही है जो भाई-बहन को हमेशा-हमेशा के लिए स्नेह के धागे से बांध लेती है। रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्य देने से सभी पापों का नाश हो जाता है। इस दिन पंडित और ब्राह्मण पुरानी जनेऊ का त्याग कर नई जनेऊ पहनते हैं।
शुभ मुहूर्त
मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन के दिन अपराह्न यानी कि दोपहर में राखी बांधनी चाहिए। अगर अपराह्न का समय उपलब्ध न हो तो प्रदोष काल में राखी बांधना उचित रहता है। राखी बांधने का समय: सुबह 5 बजकर 59 मिनट से शाम 5 बजकर 25 मिनट तक है। अपराह्न मुहूर्त: दोपहर 01 बजकर 39 मिनट से शाम 4 बजकर 12 मिनट तक है। पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: दोपहर 03 बजकर 16 मिनट (25 अगस्त), पूर्णिमा तिथि समाप्त: शाम 05 बजकर 25 मिनट (26 अगस्त)
राखी बांधने की पूजा विधि
रक्षाबंधन के दिन अपने भाई को इस तरह राखी बांधें: सबसे पहले राखी की थाली सजाएं। इस थाली में रोली, कुमकुम, अक्षत, पीली सरसों के बीज, दीपक और राखी रखें। इसके बाद भाई को तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र यानी राखी बांधें। राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारें। फिर भाई को मिठाई खिलाएं। अगर भाई आपसे बड़ा है तो चरण स्पर्श कर उसका आशीर्वाद लें। अगर बहन बड़ी हो तो भाई को चरण स्पर्श करना चाहिए। राखी बांधने के बाद भाइयों को इच्छा और सामथर््य के अनुसार बहनों को भेंट देनी चाहिए। ब्राह्मण या पंडित जी भी अपने यजमान की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं। ऐसा करते वक्त इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए: ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
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